Ek Lekhak Ke Roop Mein Meri Yatra
एक लेखक के रूप में मेरी यात्रा

लेखक की यात्रा

जब मै याद करती हूँ, अपनी “ जोरबा”  के साथ की गई यात्रा तो मुझे महसूस होता है, जैसे उनसे जुड़ने के पहले मैं खुद को हीं पहचान नही पा रही थी। ऐसा लगता था जैसे लोग मेरे जिस रूप को जानते थे वो मेरी पहचान नही थी क्योकि मैं अपने लिए कुछ अलग नाम पाना चाहती थी।

अब जैसे जंगल मे अनेकों पक्षी एक साथ कोलाहल करते हैं तो उनकी सम्मिलित गुंज को चहचहाहट ही कहा जा सकता है पर उसमे से हीं कुछ पक्षी मैदानी इलाके मे आकर, बगीचे  मे गाती है तो हम कह उठते है -               “आह”, इस पपीहरे की पीहू – पीहू से मन ब्याकुल हो उठता है क्योंकि टीश् भरी उसकी अवाज अनोखी है, या कोयल की कूहू – कूहू से तन मन नाच उठता है। 

       तो मैं कहना ये चाहती हूँ की इन पक्षियों ने संघर्ष किया, जंगल से बगीचे तक  की यात्रा की, पर बगीचे ने भी उसे निराश नही किया, उसने भी उनकी आवाज को एक पहचान दिलवाया उसके भावनाओं से लोगों को रूबरू करवाया।


लेखक की यात्रा

मैं अपनी एक बात और कहना चाहती हूँ, कि मेरे साथ कहानी ये हुई थी कि मैं लिख तो बड़े मजे से लेती थी, पर जहाँ बोलने या किसी को ये बातें बतानी होती तो मैं संकोच मे घिर जाती। लिख – लिख कर काफी रचनायें इकठ्ठी हो गई पर कोई भी ये नही समझ पाता कि मैं कुछ लिखती भी हूँ। तब मैंने “इन्टर-नेट” पर प्रकाशक की तलाश करने लगी। प्रकाशकों की इस भीड़ में मैं जैसे गुम होने लगी, उनसे सम्पर्क करके थक सी गई पर किसी ने भी मेरी रचना मे कोई रूचि नही दिखाई, हताश हो मैं बैठना ही चाहती थी कि उस दिन मेरी नजर “ जोरबा “ पर पड़ी निराशा में डूबी ही सही, मैने एक बार इन्हे भी आजमाने का फैसला किया । और मैं सुख:द आश्चर्य से भर उठी जब इनकी आश्वाशन मुझे मिली । और इन्होने बहुत शिघ्रता से मेरी रचना को प्रकाशित कर दिया ।

और मैं जहाँ सोचती थी -
मेरे दिल पर बोझ है इतना,
जिसे लेकर चलना नही आसान ।
जहाँ पटक दूँ इन बोझों को,
मिल जाये ऐसा कोई “खलिहान”
और मुझे जोरबा के रूप में वो खलिहान मिल गया ।


धन्यवाद जोरबा!

ये कविता हमने अपनी एक कहानी से ली हुई हैं।
लेखिका – चन्द्रकान्ता दाँगी
प्रकाशित रचना – बयार ( कहानी संग्रह )

A basket of rich experiences of Zorba Books and other well-known authors

Author Interview Sudipta Bhowmik