जातिवाद की बेड़ी - ZorbaBooks

जातिवाद की बेड़ी

हमें क्या फर्क है, रंग से या नाम से?

हम सब एक हैं, दिल से और दिमाग से।

क्यों बांटते हो तुम हमें जाति के नाम से,

क्या इंसानियत नहीं बड़ी, इन पुराने धाम से?

खून सबका एक सा है, क्या कोई देख पाया?

किसी को ऊंचा समझा, किसी को नीचा पाया।

दिलों में बसा है जो प्रेम और सम्मान,

वो जातिवाद से क्या कुछ भी दूर नहीं जान?

हर इंसान का हक है, जीने की राहों में,

कैसे बांट दिया हम सबको, रंग-रूप की बातों में।

ये दीवारें, ये बेड़ियाँ, बस भ्रम का हैं खेल,

वक्त है उठ खड़े होने का, इंसानियत का राग फेल।

जातिवाद को तोड़ो, अब इसे दूर करो,

एकजुट हो चलो, यही समाज को सुधारो।

हम सब बराबर हैं, ये समझो और जानो,

इंसानियत की ओर बढ़ो, एक नयी राह अपनाओ।


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MR. HAYDOR UDDIN
Assam