Description
A Poetry Book in Hindi
भूल नहीं पाती हूँ मैं
अपने देश वेफ खेत-खलिहानों को, हरियाले चाय बागानों को
गंगा की निर्मल धरा को, कश्मीर वेफ हसीन नजारे को
भूल नहीं पाती हूं मैं।
सागर की मस्त हिलोरों को, मेले में लगे हिंडोलों को
होली औ’ तीज दीवाली को, उगते सूरज की लाली को
भूल नहीं पाती हूं मैं।
अपने गांव की गलियों को, त्योहारों की रंगरलियों को
चूरन की खट्टी गोली को, सखियों की भोली टोली को
ममता की मीठी लोरी को
भूल नहीं पाती हूं मैं।
सावन की मस्त घटाओं को, पीपल की ठंडी छांव को
पनघट पर बैठी गोरी को, गन्ने की मीठी पोरी को
भूल नहीं पाती हूं मैं।
बाबुल वेफ प्यारे आंगन को, ससुराल वेफ पहले सावन को
बचपन की मीठी हाथा-पाइयांे को, बिछडे़ बहनों और भाइयों को
भूल नहीं पाती हूं मैं।
About the Author
मैं सुलेखा डोगरा कोई बडी कवयत्राी तो नही हूं, बस किसी तरह अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालने का प्रयत्न करती हूं। जब भी मैं भावुक हो जाती हूं, कुछ शब्द पन्नों पर उतार देती हूं।
मुझे बागवानी में बहुत रुची है। पुराने हिंदी गाने मुझे बहुत पसंद है। अपने पोतों के साथ खेलना बेहद पसंद है। मुझे सिलाई, बुनाई, हिंदी टीवी नाटक, हिंदी पिफल्मे, सभी से मिलना, खाली समय में अच्छी अच्छी पुस्तकें पढ़ना अच्छा लगता है। सबको खुश देख कर मैं बहुत ही संतुष्ट हो जाती हूं ।
मुझे मेरे अपनो का भरपूर स्नेह और आदर मिला है और मैं मेरे भारत में रहने वाले अपने सभी प्रिय जनों को बहुत प्यार करती हूं। अपनी कविताओं को ब्लाॅग वेफ माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने वेफ लिए मेरी नातिन हिना ने मुझे प्रेरित किया है।
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