मन - ZorbaBooks

मन

मन चल उस ज़मीन पर

जहाँ परियों का मेला न हो

जहाँ हर समय सुबह न हो

और खुशियों का रेला न हो

जहाँ मदहोशी का

आलम न हो

बड़ी बड़ी बातें न हो

रातों से लंबे सपने न हो

जहाँ खेत हो गाव के

जुएँ हो हल् के 

गर्दन हो बैलो के

कंधे हो किसान के

जहाँ प्यार हो

तकरार हो

और

मनुहार हो

मन चल उस ज़मीन पर

जहाँ परियों का मेला न हो


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Amit Kumar Mall