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गाँव की लोग लिली को गुमशुदा चाँदनी कहकर बुलाते थे। उनका कहना था कि रात को जब चाँदनी आसमान में आती, तो लिली भी उसके साथ खेलती थी।एक दिन, लिली की माँ उसे कहती है, “लिली, आज तुम्हें उस जंगल में नहीं जाना चाहिए।”लिली का मन उतावला होता है। “लेकिन क्यों, माँ?” वह पूछती है।माँ की आँखों में एक गहरी चिंता होती है। “कुछ बुरा हो सकता है, लिली।”लिली का मन नहीं मानता। वह चुपचाप और अनदेखा होते हुए वह जंगल की ओर बढ़ती है।जंगल में गहरी चुप्पी छाई होती है। लिली की धड़कनें तेज होती हैं। वह अपने चरणों की ध्वनि को सुनती है, जो धरती से सहारा मांगती हैं।फिर एक आवाज़ आती है। “कौन है?” लिली कहती है, डर से भरी आवाज़ में।वहाँ से कोई जवाब नहीं आता। लेकिन थोड़ी दूरी पर, वह एक चमकती आँख का नजारा देखती है।वह आगे बढ़ती है और वहाँ एक छोटा सा प्याला देखती है। प्याले में एक चाँदनी की किरण बढ़ती है, जैसे कि वह उसका इंतजार कर रही हो।लिली के मन में एक आशा की किरण उजागर होती है। वह प्याले को ले जाती है, और जब वह इसे छूती है, तो एक चमकती बदलाव होता है।वह चाँदनी के अंगन में आ गई है। वहाँ उसे एक नन्हा सा चाँदनी का मंजर दिखाई देता है, जो उसे अपनी आँखों में समाहित करता है।लेकिन तभी आसमान से एक ध्वनि सुनाई देती है। “लिली, घर चलो।”लिली उत्सुकता से उठती है, और चंद्रमा को एक अंतिम झलक देती है, परंतु वह उसकी आवाज़ की ओर मुड़ती है।वह अपनी माँ के साथ घर की ओर चलती है, और उस दिन से उसने कभी फिर जंगल में कदम नहीं रखे।


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