[ तलाश ] चल पड़ा हूँ घर की ओर अपनों की तलाश में

​चल पड़ा हूँ मंजिल की तलाश में

कहीं तमाशा न  बन जाऊँ मंजिल की तलाश में 

चल पड़ी है सांस आखिरी

कहीं प्यासा न मर जाऊँ मंज़िल की तलाश में ।

चल पड़ा हूँ घर की ओर अपनों की तलाश में

कहाँ होंगे मेरे अपने खोया हूँ रिश्तों की तलाश में

कुछ याद आते पल तो

कुछ अपनों के दिए हुए जख्मों से

कभी रुक पड़ती है तो कभी चल पड़ती है

पांव अपनों की तलाश में ।

 

 


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Ashu Choudhary "Ashutosh