जीवन की रीत
ना जाने कब हम देखते ही देखते इस कदर बड़े हो गए
कि पराये घर अपने,,, और अपने घर पराये से हो गए…
ना जाने कब हमने अपनों को छोड़ गैरों को अपना बना लिया…
कि गैर अपने और अपने गैर से हो गए।
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