पिता के अश्रु

बहने लगे जब चक्षुओं से 
किसी पिता के अश्रु अकारण 
समझ लो शैल संतापों का 
बना है नयननीर करके रूपांतरण 

पुकार रहे व्याकुल होकर 
रो रहा तात का अंतःकरण 
सुन सकोगे ना श्रुतिपटों से 
हिय से तुम करो श्रवण 

अंधियारा कर रहे जीवन में 
जिनको समझा था किरण 
स्पर्श करते नहीं हृदय कभी 
छू रहे वो केवल चरण 


Discover more from ZorbaBooks

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Comments are closed.

devraajkaushik1989