वह खून नहीं वह पानी है
वह होश नहीं वह जोश नहीं
वह खून नहीं वह पानी है
जो थम गया वह जीवन कैसा जिसका ना कोई कहानी है
याद करो वह बीते दिन भगत सिंह ने मन में ठाना था
और देश के वीर सपूतों, ने उनको पहचाना था
ना जात धर्म की बेरी थी ना भगवान का कोई माया था
हसते-हसते देश के खातिर अपना सर फांसी पे चढ़ाया था
हर कदम कदम पर पहरा था मानो अंधियारा गहरा था
हर पल एक चीख निकलती थी उस समय भी नेता बहरा था
एक बात से फांसी टल जाता देश में क्रांति मचल जाता
वीरों को द्रोही बताकर अपने सर पर बांधा सेहरा था
आज भी नेता बहरा है और कल भी नेता बहरा था |
लोकतंत्र नहीं पार्टी तंत्र है सत्ता का केवल एक मंत्र है
पैसा झूठ और जाल फरेब कर कैसे भी सत्ता में आना है
जनता का सुख चैन छीन कर उसको ही तड़पाना है |
होश में आओ वीर युवाओं
क्या अब भी नहीं पहचाना है
रोजी और रोजगार छीना अब पानी भी खरीद कर पीना है अपना अपना अधिकार खोकर क्या घुट घुट कर जीना है
जागो अपने देश के खातिर कुछ करके तुम्हें दिखानी है
नहीं किया तो जीवन कैसा
खून नहीं वह पानी है |
समाजी :-
डॉ. राजमणि नंदन
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