मेरे पिता के संघर्ष ( भाग- 01 )

मेरे पिता के संघर्ष की कहानी – भाग 01″

कैसे एक बीमार, असहाय व्यक्ति कड़ी मेहनत और पढ़ाई से माइन अफसर बन गया और पूरे खानदान में सबसे ऊँचे मुकाम पर पहुंच गया।

आरव:

तू हमेशा अपने पापा के बारे में बड़ी इज़्ज़त से बात करता है… ऐसा क्या है उनमें?

जय:

भाई… पापा यानी अभिषेक सिंह, वो सिर्फ मेरे लिए नहीं, बहुतों के लिए मिसाल हैं। एक समय था जब वो हमारे पूरे बड़े परिवार में सबसे बीमार, सबसे लाचार माने जाते थे। हालत इतनी ख़राब थी कि लोग सोचते थे – ये ज़िंदा कैसे रहेंगे?

आरव:

इतना बुरा था?

जय:

हाँ… रिश्तेदारों ने मुँह मोड़ लिया, घरवालों ने कभी साथ नहीं दिया। कोई उनके पास बैठना भी पसंद नहीं करता था।

आरव:

फिर भी… तुम लोग कैसे संभले?

जय:

बस एक इंसान थी जो दीवार बनकर खड़ी रहीं — मेरी माँ यशोदा। उन्होंने पापा की सेवा की, हम दो बच्चों — मैं और काव्या — को पाला, और कभी हार नहीं मानी।

आरव:

तुम्हारे पापा ने क्या किया फिर?

जय:

जब तबीयत थोड़ी संभली, तो पापा ने मजदूरी शुरू कर दी। वो बीमार शरीर लेकर भी रोज़ काम पर जाते। पर अंदर से एक आग जल रही थी… पढ़ाई की।

आरव (हैरानी से):

मतलब… उस हालत में भी पढ़ाई?

जय (गर्व से):

हाँ भाई! खेतों में काम, भाई-भाभी के काम, और फिर लालटेन की रोशनी में पढ़ाई। 12वीं पूरी की, फिर डिप्लोमा, फिर धीरे-धीरे मेहनत करते-करते माइनिंग ऑफिसर बन गए।

आरव (आश्चर्य से):

सच में? माइन अफसर?

जय:

हाँ, और आज वही आदमी जिसे कभी सबने नकार दिया था, वो अपने पूरे खानदान में सबसे ऊँचे पद पर है। सबकी सोच बदल दी उन्होंने… खुद को साबित किया, बिना किसी का सहारा लिए।

आरव:

भाई, सलाम है ऐसे इंसान को। तुम किस्मतवाले हो, ऐसे पिता पाकर।

जय (मुस्कुराकर):

किस्मत से ज्यादा… मैं उनकी मेहनत की औलाद हूं।

[अंत में:]

जय:

मेरे पिता ने दिखा दिया कि हालात चाहे जैसे भी हों, अगर इरादा मज़बूत हो तो इंसान खुद अपनी क़िस्मत लिख सकता है।


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Er. Vishal Maurya
Uttar Pradesh