टूटा तारा टूटा आज फिर
एक मुसाफिर से तेरा पता पूछा आज फिर
टूटा हूँ जैसे टूटा तारा ,टूटा है आज फिर
वहम ही है बस अब तो तेरे वापस लौट आने का
ख़्वा बों में ही सही तुझे याद कि या है आज फिर
भोली थी एक कलाई को दो हाथों में थमाती रही
चूड़ि यां गलती से टूटी दि या बहाना उसने आज फिर
ही बेनकाब करते उसको हम सरेआम
वो बेक़सूर साबि त करती खुद को आज फिर…..
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