मैं
दिखने में समुद्र की तरह शांत ,
पर गुस्सा उसके अंदर हर वक्त भरता तूफ़ान ।
तन्हाई में लाख सवाल करती, भीड़ में गुप चुप सी रहती l
इस आलीशान दुनियां में अपने ही ख्वाबों के महल बनाती,
थोड़ी पागल, थोड़ी नादान, थोड़ी चंचल,थोड़ी शैतान ।।
अपने आप से हमेशा बातें करती,
छोटी छोटी बातों से परेशान हो जाती,
अपने दोस्त से सब कुछ कहती ,
हमेशा खुद से ही लड़ती रहती ।।
क्या है इस दिल का दर्द,क्या कोई जाने,क्या ही कोई पहचाने ,
सब उसे बेवकूफ़ है समझते,
नहीं खरी उतरी दूसरो के उम्मीदों में तो क्या ,
पर है तो होशियार अपने दुनिया में।
सबकुछ समेठने में खुद को भूल गई ,
पता नहीं कहां वो खो गई ।।
रत्ना
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