काहिल

क्या करूं मैं क्या नही

ये असमंजस है , डर नही

हाथ हैं; मगर लगे,

लकीरें अभी बनी नहीं

लकीरों में जो उलझ गया

मंजिल उसे मिली कहां ?

राह पर चला नही

और पूछे अंत है कहां?

गर खोज की तपिश नही

न पाने की खलिश है क्यों?

जो चाहा था वो मिल गया

तो रह मगन उदास क्यों?

हसरतों की भीड़ में

तू खाली हाथ क्यों रहा?

तू मोती की तलाश में

साहिल पे क्यों नही डटा ?

अवसर यूं मिलते नही

पर तूने यूं गंवा दिए

और आज खुदसे पूछता

मैं काहिल ही क्यूं रहा??

मैं काहिल ही क्यूं रहा??


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Kashish Chhabra