गर्मी की फुसफुसाहट और एक डायरी
गर्मी की फुसफुसाहट और एक डायरी
“एक ऐसी कहानी जो सिर्फ दर्द नहीं दोस्ती का सच भी लिख गया”
मोना गुस्से से आग बबूला हो रही थी , पर गुस्सा अध्यापक पर नहीं था, बल्कि कोमल पर था। उसको लग रहा था कि अध्यापक ने उसकी बेज्जती कोमल के कारण ही की। उस दिन से मोना बदले की भूखी हो गई, वो भी कोमल की मौत की भूखी। उसने मौका पाकर कोमल को खाई से धक्का दे दिया और बेचारी की सांसे हमेशा के लिए थम गई। बेचारी कोमल की क्या ही गलती थी, बस इतना ही कि वह अध्यापक जो सवाल मोना से किये थे , उसका वह सही जवाब दे देती है, इसी कारण बेचारी को मौत की सजा मिली। उसे दिन से मोना के जमीर पर एक खून का बोझ हो गया। पुलिस को ये एक हादसा लगा, और उन्हें उसके पर्स से एक डायरी और एक तस्वीर मिला। तस्वीर में दो छोटी बच्ची थी, उसमें कोमल और जिया लिखा हुआ था। पुलिस ने खोजबीन करके जिया का पता लगाया, और जिया के घर वह डायरी और वह तस्वीर पहुंचा दिया। बहुत डायरी और तस्वीर मोना के पास पहुंचा, हां वही मोना जिसने कोमल को मारा था। मोना ने जैसी वह तस्वीर देखी उसकी जैसे सांसे ही थम गई, उसकी आंखें आंसुओं से भर गई। उसके हाथ थरथराने लगे, उसने थरथराते हाथों से डायरी खोला। डायरी के पन्ने को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कोमल इस डायरी को रोज जिया को याद में पढ़ा करती थी और उसके आंसू जब पन्ने पर गिरते तो वो पन्ने भी दुख को अपने अंदर समेट लेते, जैसे वह भी रो पड़े हो। मोना ने डायरी को पढ़ाना शुरू किया–” जब सूरज सब के ऊपर चमक रही थी, हवा मानो शर्मा के कहीं छुप गई थी, और जब इसी गर्मी में सब अपने घरों के अंदर छुपे थे, मैं अपने पसंदीदा पीपल के पेड़ के नीचे बैठा करती थी। उसे दिन भी हवा चुप थी, भूख भी सबको तप रही थी और गर्मी की फुसफुसाहट दिल में कुछ खोल रही थीं, जिस दिन जिया मेरे ज़िन्दगी में जिया आई थी। मैं रोज की तरह उसे दिन भी पैर के नीचे बैठी हुई थी, तभी एक आवाज आई- ” क्या मैं यहां बैठ सकती हूं?” उसके होठों पर एक अजीब थकावन भारी मुस्कान थी और आंखों में अनकहे राज थे। उसे दिन से हर दोपहर हमारे मिलने का सिलसिला बन गया। न जाने कब हमारी वह छोटी सी मुलाकात दोस्ती में बदल गई, एक ऐसी दोस्ती, जो गर्मी की तपती दोपहर को थोड़ा ठंडा बना देती थी। उसके साथ मेरा वक्त जैसे रूक ही जाता था। उसका साथ…. एक ठंडक था गर्मी की इस तपती दोपहर में। लेकिन फिर—एक दिन वह मुझसे मिलने आ ही नहीं, दूसरे दिन भी नहीं है और फिर कभी नहीं है आई। ना कोई चिट्ठी, ना कोई अलविदा, बस बिना बताए चली गई:- जैसे धूप में से छाया अचानक कहीं चली जाती है। मैं हमेशा उसका इंतजार इस पेड़ के नीचे करती थी, कि शायद वो किसी दिन वापस आ जाए। मेरा दिल कहता है, एक दिन मैं उससे जरूर मिलूंगी मरने से पहले।” और अंत में लिखा हुआ था। ” जिया तुम जहां भी रहो खुश रहना, और दुखी होने पर बस मुस्कुरा देना।
गर्मी की वह आखरी दोपहर और तेरा वह अलविदा…. आज भी मन में वैसे ही गुजता जैसे कोई अधूरी सरसराहट।”
मोना उसे डायरी को पढ़ते – पढ़ते कोमल को महसूस कर रही थी। मोना पूरी टूट चुकी थी। वह इसलिए क्योंकि मोना ही जिया थी, दरअसल वह अचानक से शहर में शिफ्ट हो गई थी, और शहर में ही उसका नाम मोना पड़ गया। मोना (जिया) के आंसु रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे, क्योंकि उसने अपनी सबसे प्यारी दोस्त कोई नहीं पहचाना। उस रात मोना डायरी को खुद से चिपकाकर बहुत रो रही थी। उसको मन कर रहा था कोमल से गले लगा कर और माफी मांगे, पर बहुत देर हो चुकी थी। मोना को समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने पाप का कैसे पछताप करें? उसे याद आया की कोमल का सपना अपने गांव का सुधार करना था, और उसमें बहुत सारी सुविधाए उपलब्ध करवाना था। उसे दिन से वह कोमल के सपने को पूरा करने में लग गई। कोमल की डायरी एक कहानी लिख गई थी जिसने मोना को पूरा बदल दिया था। मोना रोज कोमल से मन ही मन माफी मांगती थी, और उसे डायरी को रोज पढ़ा करती थी। हर गर्मी में मोना को वही फुसफुसाहट सुनाई देती है जो, वह कोमल के साथ सुना करती थी। आज भी जब धूप तेज होती है, और कोई हल्की सी हवा का झोंका आता है, तो मोना लगता है- शायद कोमल ने फिर से कुछ कहा हो। शायद वह आई हो, बिना नजर मुझे देखने। मोना हमेशा कोमल से मन ही मन कहां करती है–
” कोमल तुम अभी भी हो इस गर्मी की एहसास हमेशाके लिएसफुसाहट में।” और मोना को ओंठो पर एक हल्की सी मुस्कान आ जाती है।
“कुछ कहानी कभी खत्म नहीं होती है ऐसी ही कहानी थी ,जिया और कोमल की। “
“कुछ दोस्त गर्मियों की तरह होते हैं–आते हैं छूकर निकल जाते हैं…. लेकिन एहसास हमेशा के लिए छोड़ जाते हैं।”
लेखिका:– कोमल कुमारी
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