प्रवासी के शब्द
आज नहीं तो कल ही सही।
संघर्ष के सफर को अंत करके, लौटूंगा वहीं।।
जैसे किसी पीढ़ी के राजतरँग से निकलके।अपने पुर्वज का उफनता तरंग बनके, लौटूँगा वहीं।।
कुछ कहानियां बुनकर और कुछ सुनकर।
तुम्हें अपनी जिंदगानी सुनाने, लौटूँगा वहीं।।
बड़ी मछली से बचकर, छोटी मछली की तरह।कभी बड़ी मछली बनकर, जिंदा लौटूँगा वहीं।।
अकेले रहकर मन को समझा लिया पर।
अपने बेचैन दिल को समझाने,लौटूँगा वहीं।।
अपनों को याद करते हुए और अपनों के लिए रोते हुए।
किसी दिन, किसी एक ट्रेन से, मैं भी,लौटूँगा वहीं।।
इन्द्रधनुष के तरह सतरंगी खुशी के रंग बनके।
अपने घर में उत्सव की तरह, कभी लौटूँगा वहीं।।
माँ के लाड़,भाई और बहन का प्यार लेने।साथ में पापा की डाँट खाने, लौटूँगा वहीं।।
अकेलेपन के अटूट मित्रता को तोड़रकर।अपने असली मित्रों से मिलने, लौटूँगा वहीं।।
अपनों के यादों को याद से याद रखते हुए।
बचपन के यादों की पोटली खोलने,लौटूँगा वहीं।।
किसी साइबेरियन पक्षी की तरह।
वक्त तो लगेगा,लेकिन लौटूँगा वहीं।।
सौरमण्डल के प्लूटो की तरह।
तुमपे अधिकार दिखाने, लौटूँगा वहीं।।
जैसे सुबह का भुला शाम को घर आये।
वैसे मैं भी तुम्हारे पास, लौटूंगा वहीं।।
घर से दूर रहने के अभिशाप से छुटकारा पाकर।
जिंदा न सही, मुर्दा बनकर एक दिन, लौटूँगा वहीं।।
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