Kuch kaali raaten
कुछ काली रातें मेरे नसीब में भी आई थी…
एक अंजान चेहरे ने मेरी नींदे चुराई थी…
बेबाक सा वो मुझे हर मोड़ पर मिलता था…
नकाबपोश बेनाम मेरे पीछे-पीछे चलता था….
उसके पागल दोस्त भाभी कहकर चिढ़ाने लगे..
धीरे-धीरे सब अपनी बद्तमीजिया बढ़ाने लगे..
अकेली थी मैं अपनी मंजिल के अजनबी शहर में..
हवाओं की आहट से भी डरने लगी थी, भरी दोपहर में…
एक दिन सिसकियां छोड़, हिम्मत मैंने बांध ली..
अपनी चुप्पी को तोड़ रूढ़ीवादी की नींव लांघ ली…
प्रश्न का सैलाब मैंने उसके सामने बहा दिया ..
ना जाने क्या गलती थी, मेरी उसने चेहरा तेजाब से जला दिया..
चीखी थी मैं, चिल्लाई थी, बेहोश ज़मीन पर लड़खड़ाई थी..
कुछ काली रातें मेरे नसीब में भी आई थी..
शोरीदा से फिरते थे मेरे परिवार वाले..
नुक़्ता-चीं लोगो ने मुझ में ही नुक़्ता निकाले..
अकेले पड़ी रहती थी मैं अंधकार से कमरे में..
पीप सा भरने लगा था तेजाब से जले फलकों में…
चींटियों की धार मेरे पास चली आती थी..
बस मुझे पता है मेरी आपबीती, मैं किस कदर खुदको बचाती थी..
हौसला मेरा डगमगाने लगा था..
मुझे मेरा बचपन याद आने लगा था…
जब घुटनों पर चलते चलते मैंने कई चोटे खाई थी..
फिर भी मेरी टांगें कभी ना लड़खड़ाए थी..
मुझ जैसे कई और भी बशर होंगे..
परचम लिए अपना अफ़्सुर्दा से खड़े होंगे..
पर अपनी इन जकड़ी बेड़ियों को मैंने शस्त्र अपना बनाया था..
यकीन मानिए मेरे मुंह पर तेजाब डालने वाला नकाबपोश भी पछताया था..
दश्त भरी राहों में खुर्शीद की किरण नजर आई थी..
फिर भी कुछ काली रातें मेरे नसीब में तो आई थी..
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शोरीदा- worried
नुक़्ता-चीं- the person who try to find only bad quality of another person
बशर- people
परचम- flag
अफ़्सुर्दा-sad
दश्त- jungle
खुर्शीद- sun
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