कुर्बानियां

तुम बात कुर्बानियों कि करते हो.

उस पिता सा कौन होता है….. 

जो जिता है बिटिया कि खातिर

और उसे हि विदा कर देता है

शायद उसकी हालत उस शाख के जैसे होती है.

जो खुद के सिंचे फल को दुसरो कि खातिर खोता है

तुम बात कुर्बानियों कि करते हो…. 

उस पिता सा कौन होता है….. 

जो बीज संस्कारो के बोता है

जो प्यार से सपने पिरोता है

अपनी प्यारी गुडिया कि खातिर कई रातो को न सोता है

अपना घर सुना कर दुसरे का आंगन सजोता है

तुम बात कुर्बानियों कि करते हो

उस पिता सा कौन होता है….. 

जब मुरझाया सा थक हार कर घर को अपने आता है

देख हंसी अपनी लाडो कि वह पल मे खिल सा जाता है

अपनी खुशियों कि चाबी को वो सौप किसी को देता है

तुम बात कुर्बानियों कि करते हो.

उस पिता सा कौन होता है…… 


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Neha Mishra