Siraro Ki Raat
वो सपना जैसे कल की बात थी,
सितारों से सजी वो रात थी.
तारों की सुहानी बहार आई थी,
साथ अपने प्यारा-सा तारा लाई थी.
बादलों मे डूब गया वो तारा था,
मन को वह बेहद प्यारा था.
इसके कितने टूटे तार थे,
जोड़ने इसके टूटे तार थे.
देखो आँगन मे सजे कितने तारे थे,
धरती पर खुशिया बरसा रहे सारे तारे थे.
तारों को सैर करा रहा वो अम्बर था,
तारों के बीच दिख रहा वो अंतर था.
जब सपनो के सैलाब से बाहर आया,
तब वो सपना मुझे याद आया
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