तस्वीर
मेरे घर के आईने मे एक अक्स कैद है तेरा
वो जहां मैं हूँ तेरी और तू है मेरा
ना जाने कितनी ख्वाहिशों की उसमें तस्वीर दिखाई देती है
जो कभी बन नहीं सकती, वो तकदीर दिखाई देती है
छुपा दूँ उसे नजरों से, कहीं दूर रखवा दूँ?
या एक काम करूँ, उसे तेरे घर भिजवा दूँ?
जब भी मैं देखूं उसको, मुझसे तेरी बात करता है
याद दिलाता है तेरी, नींदें खराब करता है
जबसे नजरें फेरी है मैंने उससे तेरी यादें थमने लगीं हैं
पर जो तस्वीर हमारी थी उसमें, उसपे मिट्टी जमने लगी है…
Discover more from ZorbaBooks
Subscribe to get the latest posts sent to your email.