यकीन
यकीन हो चला है अब इस बात का,के वो कभी भी मेरा नहीं था…अब हंसी आती है ये सोच कर,की कितनी खुश थी मैं उस वहम में।वो शोर इश्क का मेरे लिए नहीं था,उसकी खामोशियों ने सब कह दिया।हाँ परेशान हूं फिर भी थोडी,थोडी ओर फिक्र होने लगी थी उसकी।देख रही हूं सब कुछ अपनी आँखों से,कैसे दूर मुझे उसने शरेआम कर दिया।यकीन हो चला है अब इस बात का,के उसकी सारी कोशिशें झूठी थी ।शायद ये भी वहम था के उसे चिंता है मेरी,कैसे अनजान उसने मुझे अपने आप से कर दिया।
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