प्रियांशी सोलंकी की कुछ शायरियां
सुनहरा रंग था मेरी मिट्टी का उस जवान ने अपने लहू से लाल कर दिया आगे सुनो तोह जरा उसकी कहानी जब लौट न घर वो तिरंगा ओढ़ के तो उसकी बूढ़ी माँ ने भी हसके सलाम कर दिया ।।
दर्द – ए – तनहाई तो बहुत है दिल में इसे कोई अपना बताता नही नश्तर तोह अपनो ने ही गाढे हैं इसे कोई उल्फत से गले लगता नहींं।।
सुनसान रास्ते पे सहमी हुई चल रही थी धीमे धीमे वो आगे भाड़ रही थी कोई था उसके आस पास एक अनजान सी धमक उसकी धड़कन तेज़ कर रही थी
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