छात्रों का सिमटता जीवन
*छात्रों का सिमटता जीवन*
आज के जमाने में जब कॉलेज और यूनिवर्सिटी से चुनाव परंपरा को सरकार ने जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया और छात्रों को राजनीतिक ज्ञान को नष्ट एवं किताबों तक सीमित करके रख दिया है ।मैं स्वयं एक कॉलेज का छात्र हूं और मे हर उस छात्र की पीड़ा को समझ सकता हूं जिन्होंने बड़ी उम्मीद के साथ एडमिशन लिया होगा और विषय चयन प्रक्रिया के अंतर्गत राजनीतिक विज्ञान का चयन किया होगा। उनकी वह राजनेता बनने की अभिलाषा जिसका मौका कई पीढ़ियों से उसे कॉलेज और यूनिवर्सिटी से मिलते आ रहा था ।
कॉलेज और यूनिवर्सिटी केवल पढ़ने की जगह नहीं बल्कि छात्रों के प्रश्न करने की ताकत देता है उनके अधिकारों एवं समाज के अधिकारों के लिए लड़ने की ताकत प्रदान करता है ।यह बहुत ही चिंतन का विषय है की कॉलेज और यूनिवर्सिटी से चुनाव की प्रक्रिया को सरकार ने जड़ से खत्म कर दिया । क्या अब उम्मीद लगाई जा सकती है कि हमें अब पंडित जी ,शास्त्री जी ,विश्वनाथ जी ,चंद्रशेखर जी जैसे दिग्गज नेता मिलेंगे । भारत राजनीति का पहला चरण कॉलेज और यूनिवर्सिटी के चुनाव के रास्ते से हो कर जाता है। यदि भारत के राजनेताओं का इतिहास को उठाकर देखा जाए तो पता चलेगा कि उन नेताओं की जड़ों को मजबूत करने का कार्य कॉलेज और यूनिवर्सिटी के द्वारा किया गया है । उन्हें बेधड़क बोलने की ताकत एवं निडर लड़ने की ताकत भी वहीं से मिली है पर आज के परिवेश को देखकर मानो ऐसा प्रतीत होता है कि छात्रों से एक और आगे बढ़ाने का मौका छीन लिया है सरकार ने । अब मानो लगता है कि आने वाले दिनों में भारत की इस पावन धरा पर आने वाले समय राजनेताओं की कमी हो जाएगी अब तो मनु ऐसा प्रतीत हो रहा है की राजनीति विज्ञान के छात्र अब केवल पेपर और सिलेबस में लिपट के रह जाएंगे ।
प्रियांशु सिंह
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