प्यार
प्यार
प्यार केवल शब्द नहीं जो दो ढाई अक्षरों से संयोजित कर बनाया गया हो प्रेम उसे चिड़िया का नाम भी नहीं है जो आपके रंग मच और चलचित्र पर दिखाया जा रहा हो, प्रेम वह माहौल भी नहीं जहां पर तन और मन का व्यापार किया जाता हो, प्रेम किसी परिभाषा का मोहताज नहीं ,प्रेम किसी सुंदर रस का अधीन नहीं जो उसे सुशोभित करता है ,प्रेम तो उसे भावना का उदगार है जो एक मां अपने बिना जन्मे बालक पे उड़ेलती है, प्रेम तो उसे भक्ति का प्रतीक है जिसने महारानी मीरा को मीराबाई बनाने पर विवश किया दिया, प्रेम उस आस्था का प्रतीक है जिसने इब्राहिम को रसखान बना दिया, प्रेम एक अनुभूति है जो यदि व्यक्ति को छू ले तो उसे पावान कर देती हैं , अलग-अलग व्यक्तियों के लिए प्रेम का अर्थ भी सर्वथा अलग-अलग ही है एक मां के लिए अपनी संतान का हर वह स्वरूप प्यार है जो ईश्वर ने उसे प्रदान किया है मां का प्रेम रंग रूप का अधीन नहीं है, एक पत्नी के लिए उसका पति एवं समस्त परिवार हैं परंतु कुछ लोग प्रेम का अर्थ मजबूरी या सहाना समझ लेते है परंतु का अर्थ ही अपने अधिकारो को जताना है , किसी बोझ के नीचे दब जाना नहीं , एक विद्यार्थी के जीवन ने उसकी किताबें ही उनका पहला प्रेम होता है इसका आभास केवल वह कर सकता है जिसने किताबें को पढ़ते पढ़ते आंखों का चदर बना लिया हो या प्रेम वह समझ सकता है जिसने किसी कहानी को पढ़ते-पढ़ते खाने की चिंता भूल गया हो आज के युग में PDF से पढ़ने वाले उस किताब की महक और उससे उत्पन्न होने वली सकारात्मक ज्ञान को नहीं समझ सकते ।
मैं समझता हु कि हर व्यक्ति को प्रेम के रंग में रंगना चाहिए चाहे वह किसी स्त्री के प्रति हो , प्रकृति के प्रति हो, किताबो के प्रति हो, परिवार के प्रति हो,ईश्वर के प्रति हो, चाहे वो स्वयं के प्रति हो, प्रेम आपको मोक्ष ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता हैं तो प्रेम कीजए हर उस व्यक्ति से वस्तु से जो ईश्वर ने आपको प्रदान की है चाहे वह आपका जीवन का सफर ही क्यों ना हों
प्रियांशु सिंह
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