अपने हर झूठ अपनी बेईमानियों पर लिखूँगा !
अपने हर झूठ अपनी बेईमानियों पर लिखूँगा
एक किताब एक दिन अपनी नाकामियों पर लिखूँगा,
ज़िक्र से जिनके दम घुटता है उन कहानियों पर लिखूँगा
मेरे नसीब की मुझ पर चली मनमानियों पर लिखूँगा,
लिखूँगा वो रिश्ते जो सुख में मेरे साथ थे
बाद फिर अपने दुःख अपनी परेशानियों पर लिखूँगा,
पहली सफ़ में लिखूँगा तुम्हारा गुस्से भरा लहज़ा
फिर किस्से तुम्हारी नादानियों पर लिखूँगा,
जिक्र तुम्हारा हर पल मेरी बातों में रहेगा
बड़े प्यार से मैं तुम्हारी शैतानियों पर लिखूँगा,
मदद जिनसे मांगी अपनी खुद्दारी छोड़कर
उन लोगों की भी मेहरबानियों पर लिखूँगा,
करूँगा जिक्र की कैसे तुम से बिछड़ गया
फिर जीवन में आई सभी कठिनाइयों पर लिखूँगा,
ये जो कल के आए लोग मुझे इश्क़ करना सीखा रहे
कुछ वाकये अपनी जवानी के इन खिलाड़ियों पर भी लिखूँगा,
अपने ख़्वाबों की आग से कैसे करी थी जीवन में रौशनी
इन जुग्नू सवार आंखों की लाचारियों पर लिखूँगा,
शीर्षक मैं लिखूँगा “मृत्य कलाकार”
अंततः अपने संघर्ष की गहराइयों पर लिखूँगा ।।
सफ़ – पहली पंक्ति
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