यूँ अँधेरो से अब मेरा मन डरने लगा है!
यूँ अँधेरो से अब मेरा मन डरने लगा है
ये खालीपन सा अब मुझे ख़लने लगा है ।।
सुख, दिन वो रातों का चैन छीनने लगा है
मेरा मन मुझको अब तो छलने लगा है
दर्द मेरे जीवन में बेधड़क चला आता है ।।
जब मैं सोचता हूँ कि दिल मेरा संभलने लगा है
किस पर करूँ यकीं और किससे दूर रहूँ ।।
अब हर सख्स से , दिल मेरा डरने लगा है
कोई नहीं किसी का सब स्वार्थ के मारे हैं ।।
देखो सबका लहज़ा कैसे बदलने लगा है
ना तुम सही ना हम सही, तो शिकव़ा कैसा ।।
क्यों नफ़रतो का बीज दिलों में पलने लगा है
आओ बैठकर हम सभी रंजिशे मिटा लेते हैं ।।
समझदार हो बड़े भी हो झुक जाओ जऱा सा
ये सुन अब मेरा आत्मसम्मान म़रने लगा है ।।
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