गलती करके पछताते हो.!
गलती करके पछताते हो
फिर क्यों गलती दोहराते हो
कांटों ने पाला है तुम को
जो फूलों सा मुस्काते हो
केवल सांसों का खर्चा है
क्यों जीने से घबराते हो
जो घर पर मिलने न आए
क्यों उसको मिलने जाते हो
पहले समझो फिर समझाओ
बिन समझे क्या समझाते हो
दर्द स्वयं ही देते हो
फिर हमदर्दी दिखलाते हो
जो तुम्हें ढूंढता रहता है
तुम उसे ढूंढने जाते हो
पानी अमृत हो जाएगा
प्यासे की प्यास बुझाते हो
शब्दों में कविता लिखते हो
भावों के भंवर उठाते हो
दिवा स्वप्न में खोए हो
वायु में किले बनाते हो
बदले बदले से लगते हो
जो हम से नज़र चुराते हो
भूली बिसरी बातें करके
क्यों मुझको आज रुलाते हो
तुम ख़ुद ही ख़ुद को छलते हो
और ख़ुद ही धोखा खाते हो !
Discover more from ZorbaBooks
Subscribe to get the latest posts sent to your email.