जो दिल में तुम्हें अपना पाया ना होता !
जो दिल में तुम्हें अपने पाया ना होता।
दुआ का भी रिश्ता निभाया ना होता। ।
दुनिया की फ़ितरत कभी ना समझते।
जो मुकद्दर ने तुमसे मिलाया ना होता।।
शिकायत भी तुमसे इतनी ना होती।
मुझे तुमने इतना सताया ना होता।।
पढ़ लेते खुद को हम भी ज़रा सा।
मुझे लिख के तुमने मिटाया ना होता।।
ख़बर थी तुम्हें कि टूटेगा एक दिन।
गुरूर -ए वफा अपना
यकीं ख़ुद को इतना दिलाया ना होता।।
हम भी शौक से घूमते उन तंग गलियों में !
कहर इतना तुमने बरपाया न होता !
फिर भी ये दिल तुम्हारा था और तुम्हारा
ही रहेगा यकीं करों या न करों
ये है तुम्हारी मर्जी !!
जो दिल में तुम्हें अपने पाया ना होता।
दुआ का भी रिश्ता निभाया ना होता।।
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