हवा - ZorbaBooks

हवा

जो हल्की-सी हवा

झरोखे से

सिरकती हुई आ रही है,

वह सिर्फ

यहां की नहीं है।

आती होगी यह-

अंधेरे जंगलों से,

नभ छूते वृक्षों के

मौन को तोड़ती हुई।

दुर्गम पहाड़ों से,

एकांत को महसूस कर

नीचे सरकती हुई।

सुदूर नदियों से,

शीतलता में समाकर

लहरों से खेलती हुई।

आग भरे मरघट से,

दुख को प्रकट कर

हल्की-सी थमती हुई।

फसल वाली खेतों से,

उनका हाल पूछकर

मधुरता भरती हुई।

वर्षा के बूंदों से,

परस्पर टकराकर

उन्हें नई दिशा देती हुई।

अंजान जगहों से,

खुशियों और उलझनों से

टकराती हुई।

बड़ी है यह दुनिया

गौर से देखो,

यह हवा सिर्फ

तुम्हारे बागों की नहीं है।

इसकी कोमलता

एहसास कराती है

कि कैसे सारे राज

जीवन के

खुद में समेटते हैँ।

इसके तीखेपन में

विद्रोह की भावना

भयावह होकर

नाश करने को

आतुर लगती है।

जिंदगी इसकी

इतनी आसान नहीं है,

कई बातें

मन में छिपाए

अभी-भी बैठी है।


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Ranjana Chaurasia