चेहरे
चेहरे ये मुखौटे हैं,
मुखौटे ही तो चेहरे हैं
अंदर का राम जला दिया,
क्यूं उल्टे पड़े दशहरे हैं
आज का राम तो कोई बन न सका
सब बन रावण बना दी नहरें हैं
अब उन्हें क्या बताना पाप नहरों में नहीं
गंगा में धुलते हैं, जो अच्छे बने फिरते हैं
उनकी बुराई दिखती नहीं,
राम के पीछे रावण राज़ केवल यहीं खुलते हैं।
जश्न-ए-भरी महफ़िल में कयामत की रात हमनें छेड़ी है
युद्ध तो औरों ने शुरू किया हमनें तो बस बजाया रणभेरी है।
चेहरे ही तो हमारी आन बान व शान है
बस खुद से खुद की हमें करनी पहचान है
धूप में या छांव में देखने का अपना नज़ारा है
मुखौटों ने छेड़ा बाज़ार नहीं, लगाया बाज़ारा है।।
चेहरों की बात तो कई गुना सीधी है
पर उन्हें आज़माना तो दूर जैसे सिंगरौली सीधी है
बस अब ज़रूरत रह गई हटाने की
मुखौटे के लहरों की, इन चेहरे पे लगे पहरों की
मन की आवाज़ से वंचित बहरों की
मुखौटा तेरा चेहरा नहीं, ढक दिया सुन्दरता है
ऐ रामभक्त ! तू रावण बनकर हमेशा उभरता है
दूल्हे के ये मुखौटे हैं, मुखौटे ही तो सेहरे हैं
चेहरे ये मुखौटे हैं, मुखौटे ही तो चेहरे हैं ।
छिप कर वार करना मुखौटों की फितरत है
वक्त की लकीर से चेहरा बचना ही किस्मत है
राह में चलते चले गए, कहीं हम ना ठहरे हैं
चेहरे ये मुखौटे हैं, मुखौटे ही तो चेहरे हैं ।।
Discover more from ZorbaBooks
Subscribe to get the latest posts sent to your email.