काला दिन
सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूंगा
अपने वीरों को नक्सलियों से मैं अब नहीं मिटने दूंगा
पुलवामा का आतंकी हमला भी अब कम नहीं
जैश ए मोहम्मद के विरुद्ध , भारतीयों कभी रखना मम नहीं ।
मैं कहता हूं आतंक ग्रह में कल राजनैतिक विशेषज्ञ मौन थे
पर अपने बेटा,भाई, पति की कुर्बानी देने वाले वो महान कौन थे बॉर्डर के कृष्ण देवकी को ही ना देख पाए
शत्रु के बाण खाकर यशोदा की गोद में सो जाएं
पर आज की स्तिथि हो चुकी है भिन्न भिन्न
हर तरफ बस आतंक है, है नहीं अब कहीं भी जिन्न ।
डंडा था गांधीजी का पहले नोट में हज़ार की
डंडा ज्यों गायब हुआ, पलट गई काया इस संसार की
बड़े बड़े वक्ताओं को अब क्या समझाना,
ये तो ठहरे बेसमझ ,है लगाते बड़े बड़े पैमाना
बदले के भाव से युद्ध की ना चाहत करो
आपसी प्रेम बनाने हेतु केवल तुम धरना धरो ।
कोई तो जगाओ आतंक के उजाले में सोए पाक को
कभी पाक दोस्ती का हाथ बढ़ाए दिन या रात को
खुशी से अलविदा कह रहे इन वीरों को नमन
कोई तो रोको आतंक को बनाने हेतु शांति- अमन
जीवन को जीने तो दो कभी इन वीरों को भी
प्रेम रस पीने दो कभी इन वीरों को भी ….
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