लोग भूल जाते है
लोग भूल जाते है, खौफ़ जो लिख गया
कोई किताब में , लोग भूल जाते हैं
देखे थे दफ़न, जो अपने आप में।
रावण का सिर ,लोग भूल जाते हैं
उसके मुस्काने पर , याद रह जाता है
कैसे हंसते थे, बच्चे घर आने पर।
5 बरस बहुत होता है ऐसे देश में
यहां वक्त भी लौट आता है नए वेश में ।
हत्या कमज़ोर की , गांव गांव होती है
कोई रोता नहीं ,यदि बची , तो
विधवा अवश्य रोती है। लोग भूल जाते हैं ।
यातना, दर्द , वेदना सब सहम कर सोती है
हर नर के पीछे एक नारी अवश्य होती है।
पढ़े लिखों का जब दिल बहलाता है
निरक्षर को हथियार वह बनाता है ।
एक बीज बोया था अपराधों का मैंने
जो कुछ किया , आज कुबूल ही जाते है
ब्रह्मांड में मानव रूपी तन–मन देने पर
ईश को धन्य करना , लोग भूल ही जाते है।
मासूमियत बचपन की लोग भूल जाते है
खिलौने के बजाय खदानों से खिलवाते है
अंधे के आंखों पर भी धूल झोंके जाते है
हिसाब इसका उसका याद रहता है
वीरों ने कुर्बानियां दी थी देशप्रेम को
लोग ये भूल ही जाते हैं।
आज मौन है जनता, जाता है शासक हिंसा के रास्ते
सच बोलते थे वो , मदिरा मिलेगी एक मतदान के वास्ते
सुखी मिट्टी के पौधे को वो पाणी नहीं देते
गूंगे को योजना तो देते है , पर वाणी नहीं देते
दोनों मिलकर के दमन चक्र यह प्रेम से चलाते है
जो मारा गया है , उसकी भी बोली थी ,
लोग ये भूल जाते है।
लोग भूल जाते है, गलती इंसानों से ही होती है ,
पर गलती से सीख लेना , प्रायः लोग भूल जाते है।
वह बोली कहां गई?
उस घोड़े पर किसी की लगाम है
लोग भूल जाते है , कलम से शब्दों की
ख़ोज लेखक का ललित काम है ।।
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