एक ख्वाब - ZorbaBooks

एक ख्वाब

एक ख्वाब 

 

यह आकाश मेरा, यह फैली धरा,

कहीं भी बना लूँ, मेरा आशियाँ.

 

समुन्दर की लहरों पे, तैरूं कहीं भी,

डालूं मैं कश्ती का, लंगर कहीं भी.

 

न रोके कोई भी, दीवार मुझ को,

न टोके कहीं भी, सरकार मुझ को.

 

न डिपोर्ट मुझ को, करे कोई यू एस,

डालूं मैं छत चाहे, ऐल्प्स के ऊपर.

 

वीज़ा न पासपोर्ट, दरकार मुझ को, 

मुल्क न मजहब की, दीवार मुझ को.

 

कई लाख बरसों से, चलता रहा हूँ

दुनियां का नक्शा, बदलता रहा हूँ

 

मैं ही तो आया, बनकर सिकंदर

मैं ही चला था, हो कर कोलम्बस

 

भारत में घूमा , फाह्यान बनकर

दुनिया में फैला, कई रूप लेकर.

 

चलता रहा हूँ, मै हूँ मुसाफिर

ये धरती मेरी है, दुनियां मेरा घर       

 

जहाँ मैं चलूँ बस , वहीँ राह मेरी

जहाँ मैं रुकूँ बस, वहीँ घर मेरा

  

यह आकाश मेरा, यह फैली धरा,

कहीं भी बना लूँ, मेरा आशियाँ.

 

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S S Sharma