उस रोज बता तू क्या होगा ?

जिस रोज मेदिनी मचलेगी , उस रोज बता तू क्या होगा ?

 

इक रोज गए थे उपवन में , वहां भंवरों का गुंजार नहीं । 

बस सूखी कलियां दूर तलक , दो – चार खिले थे फूल कहीं ।

जिस रोज वाटिका मचलेगी , उस रोज बता तू क्या होगा ?

जिस रोज मेदनी मचलेगी …………………………………..

 

इक रोज गए थे जंगल में , जंगल में मंगल था ही नहीं ।

बस सूखे डंठल दूर तक , दो – चार खड़े थेे पेड़ कहीं ।

जिस रोज विपिन ये मचलेगा , उस रोज बता तू क्या होगा ?

जिस रोज मेदनी मचलेगी …………………………………..

 

इक रोज गए थे पर्वत पर , वहां सपनों का  संसार नहीं ।

बस सूखे प्रस्तर दूर तलक , वहां निर्झर का विस्तार नहीं ।

जिस रोज महिधर मचलेगा , उस रोज बता तू क्या होगा ?

जिस रोज मेदनी  मचलेगी …………………………………

अपना तो अभिमत है इतना ,मत कुदरत से खिलवाड़ करो । 

हो सके जहां तक पेड़ लगाओ , मत जंगल पहाड़ साफ करो ।

कानन में कोयल कूकने दो और कानों में मिश्री घुलने दो ।

शर्मीली सोन चिरैया से कह दो , लाज के बोल खुलने दो ।

सागर से पानी ले लो बादल और बदली से कह दो बरसों ।     

धनिया मेथी पालक महकेगा , खूब पकेंगे गेहूं सरसों ।

इस हेतु जागो ! बर्बाद गुलिस्तां हो,उस रोज बता तू क्या होगा ?

जिस रोज मेदनी मचलेगी ………………………………………

                                            – डालचन्द सैनी ' अध्यापक '

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डालचन्द सैनी ' अध्यापक '