ढूंढ लाओ न उसे
तुम कब तक इंतज़ार करोगी, क्लोज़र क्लोज़र बोलकर कब तक खुद को गुमराह करोगी
हफ्ते बर्बाद कर चुकी हो तुम, क्या ज़िंदगई भर इंतज़ार करने का इरादा है ?
जो दरवाजे उसके नाम बोल बोल कर बंद किए थे तुमने, उन्हे खोलने का समय आ गया
किसी को आने की इजजाजत न सही, खुद को बाहर जाने तो दो
थकती नहीं थी तुम, उनकी बातें करते करते- क्या दोस्त, क्या साथी , मनचाहा विषय था वो तुम्हारा
अब क्या इस खामोशी को पनह दे दी है तुमने, तुम जानती हो न तुम पर अच्छी नहीं लगती यह
मुजे वो वाली ही पसंद हो तुम, जो थकती नहीं थी अपनी कहानिया सुनाते सुनाते
जो खिलखिलाकर हास देती थी तुम, अजीब अजीब सी शकले बनाना, तुम्हारे दात – बस यही पसंद है मुझे…
ढूंढ लाओ न उसे , मुझे तुम पसंद हो ..
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