बेटियां हैं, अब उड़ने दो…
सांस तो ले रहीं थीं कबसे, अब इनको जी लेने दो,
ज़ख्म दिए हैं कितने तुमने, अब इनको सी लेने दो,
शिक्षा दीक्षा ग्रहण करके जग मे नाम कमाएंगी,
किसी दिन साक्षी,सिंधू,सानिया, इंदिरा, पंडिता,फुले बन जाएंगी,
बेटों को छोड़ पीछे, ये आगे बढ़ जाएंगी,
बढ़ रहीं है कितनी बेटियां आगे, तुम भी तो अब बढ़ने दो,
कब तक पिंजरे में कैद रहेंगी,इनके पंखों को खुलने दो,
बेटियां हैं, अब उड़ने दो……(2)
चूल्हा चौका संभाल लिया बहुत, अब कुछ देश की खातिर करने दो,
कितना कहना माना है तुम्हारा, अब तो इन्हें भी कहने दो,
कितनी को खो दिया है तुमने, अब और मत ये होने दो,
इनकी नन्ही आंखों को अब नए सपने पिरोने दो,
बेटियां कब तक बेटों की होड़ करेंगी, अब तो इन्हें “बेटियां” होने दो,
बहुत सता लिया तुमने इनको, अब और इन्हें मत सहने दो,
कब तक पिंजरे में कैद रहेंगी, इनके पंखों को खुलने दो,
बेटियां हैं, अब उड़ने दो……..(2)
कितनी मारी है कोख में तुमने, अब और इन्हें मत मरने दो,
जिंदगी में जो करना चाहतीं हैं, अब तुम इनको करने दो,
कब तक हवसी नोचते रहेंगे, अब तुम इनको “दुर्गा” होने दो,
जो पहचान बना दी थी तुमने, अब तुम इनको खो लेने दो,
डरी सहमी नहीं रहेंगी, अब तुम इनको “काली” हो लेने दो,
कब तक शिक्षा से वंचित रहेंगी, अब तुम इनको “गार्गी” हो लेने दो,
कब तक पिंजरे में कैद रहेंगी, इनके पंखों को खुलने दो,
बेटियां हैं, अब उड़ने दो……..(2)
– संजू कुमारी
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