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जिंदगी की तालीम

ए शाम ये तेरी बेइमानी है , तेरे आते ही जाने की मनमानी है, तू उस दर्द की याद लेकर आती है और मुझे रात के हवाले कर जाती है फिर रात से डर लगता है उस याद से डर लगता है ,हर उस चाह से डर लगता है जो कांच की राहों पर चलने पर मजबूर कर देती है ,जनता है ये जहां सारा की जिंदगी कांच की राहों पर चलने पर मजबूर कर देती है पर इतनी मुख्तसर होती है कि तबस्सुम करने का भी मौका नही देती

 

पर इन कांच की राहों पर चलना इस रात में जगनूओं से डरना ये हमारी किस्मत बनकर क्यों रह जाती है

 क्यों हर बार इन घटाओ को ही अश्क बहाने पड़ते है 

क्यों हमारी ही प्यास बरसने से नही बुझ पाती है

 क्यों रातों को सिर्फ हम ही अंधेरों से पहचानते है और जगनुओ से डर कर भाग जाते है 

कोई क्यों नही देखता उस रोशनी पे मेरे ऐतबार को ,कोई क्यों नही जानता मेरी खामोशी के पीछे छुपी इकरार को 

पर इन राहों पे चलना और संभालना भी तो हमे नही आता जिंदगी पांव में चोट देती फिर भी ये मन नही घबराता बस यही एक कहानी हर गुलशन की कहानी है अंगारों की और मेरे फना होने की तयारी है 

ए शाम कैसी तेरी बेइमानी है आज अश्क बहते रहते हैं और जिंदगी बस चलती रहती है


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