युद्ध्वंश
फिर धधके हैं शोले ,धू-धू जलता जीवन सारा,
गूँज रही है धरती, सिहर रहा आकाश हमारा |
लपलपाती ज्वाला, चहूँओर फैलता अंधियारा ,
रूदन,विलापों से काँपता ह्रदय,बहती चारो ओर रक्तधारा ||
सोचता रहा मैं की कौन, कब ,किससे , युद्ध में है हारा,
आवाज आई, ये धरती और ये मानव जीवन सारा |
अनाथ बच्चे, विस्मृत माताएँ,बहनें बहा रही होंगी अश्रुधारा,
चित्कारों में डूबती साँसे,सिसकियो में घूँटती ये वसुधा सारी ||
छूटता बचपन, यौवन, वो जगमगाता गलियारा |
पायेगा बर्बादियो के मंजर,नफरत,आंसूओ के सैलाब और रक्त धारा ,
टूटते सपने,सूनी आँखे "शाह" होगी नम, याद दिलाएगा इतिहास दुबारा ||
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