मौसम की मार
मौसम की मार
"पकौडे ले लो बाबूजी गरम-गरम पकौडे,बहनजी पकौडे ले लो…."
एक 30-35 बरस की युवती बस स्टैंड के पास सडक किनारे एक कोयले के चुल्हे पर पकौडे बना रही थी.मई का महीना दिन के 1 बज रहे थे .धूप में ऐसी गरमी थी कि बदन जल जाए.उसने अपने बचाव के लिए त्रिपाल की छावनी लगा रखी थी. कुछ समय बाद एक साहब उसकी दूकान की ओर बढ़ते हैं."कैसे हैं पकौडे?" "जी 20के 4" "अच्छा 4 दे दो." वो पकौडे पैक करने लगती है तभी भयंकर तूफान उठता हैऔर वह साहब पकौडे लिऎ बिना एक ऑटो रिक्शा में बैठकर चला जाता है.वो भी अपना जान बचाने के लिए बगल के एक दूकान में छुप जाती है.
तूफान और वर्षा के बाद फिर उसी तरह कडी धूप निकल जाती है.वो अपने दूकान को ठीक करने में लग जाती है.त्रिपाल के चारो बांस गिर गए हैं, चुल्हा टूट गया है, बने हुए पकौडे भी गीले हो गए.वो सोचने लगती है , सब ठीक करते- करते शाम हो जाएगी.आज सुबह से कुछ नहीं बिका, रात का राशन कैसे लूंगी .और क्या पता कल भी तूफान पानी आकर सब खराब कर दे .पर मौसम की मार तो झेलनी ही पडेगी.
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