दिमागी कमज़ोरी - ZorbaBooks

दिमागी कमज़ोरी

कहने और करने को तो कुछ भी नामुमकिन नहीं,,

पर क्या करें इंसान अपने को ख़ुद ही सीमित कर चुका है,,

चाहे वो किसी भी अवस्था और आयु में हो,,

मानसिक और शारीरिक रूप से हार मान जाना हम इंसानों की आदत हो चुकी है,,


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Sudhanshu Pratap