दिमागी कमज़ोरी
कहने और करने को तो कुछ भी नामुमकिन नहीं,,
पर क्या करें इंसान अपने को ख़ुद ही सीमित कर चुका है,,
चाहे वो किसी भी अवस्था और आयु में हो,,
मानसिक और शारीरिक रूप से हार मान जाना हम इंसानों की आदत हो चुकी है,,
Discover more from ZorbaBooks
Subscribe to get the latest posts sent to your email.