मेरा जीवन ही संघर्ष है - ZorbaBooks

मेरा जीवन ही संघर्ष है

मेरा जीवन ही संघर्ष है.! जब से जन्म लिया हूॅं।उस दिन से आज तक रोता आया हूॅं, जीवन को समझा न पाया हूॅं। इससे हारता आया हूॅं। कि मेरा जीवन ही संघर्ष है यह कह कर अपने आप को झेल रहा हूॅं।

जीवन इतना लंबा है कि पता नहीं कब ख़त्म होगा। जब तक होता जी लेता हूॅं। क्या करूं जिंदगी तो है ये मानकर सह लेता हूॅं। मेरा जीवन ही संघर्ष है यह कह कर अपने आप को झेल रहा हूॅं।

जब से सब कुछ जान रहा हूॅं। आस-पास के ताने झेल रहा हूॅं। क्या करूं अपने ही तो हैं यह कह कर चुप रह लेता हूॅं। मेरा जीवन ही संघर्ष है यह कह कर अपने आप को झेल रहा हूॅं।

जिंदगी की ऐसे मोर पर खड़ा हूॅं। मेरे हमसफ़र भी मुझसे मुकर गए हैं मेरे साथ चलने की बात छोड़ो वो सफर देखकर ही मुकर गई थी । मेरा जीवन ही संघर्ष है मेरा जीवन ही संघर्ष है यह कह कर अपने आप को झेल रहा हूॅं।

जिंदगी में क्या करना है यह लक्ष्य सोच रहा हूॅं। मेरे अभी उम्र ही क्या हुई है यह कह कर उसे छोड़ रहा हूॅं। पता नहीं क्या होगा पर अपने हौसले को धीरे-धीरे तोड़ रहा हूॅं। मेरा जीवन ही संघर्ष है और अपने आप को झेल रहा हूॅं।

जिंदगी में बहुत कुछ करना यह सोचता हूॅं। क्या करूं अपनों का विश्वास, मेरे ऊपर इस विश्वास का लगता है, दिनों दिन गला घोटता जा रहा हूॅं। मेरा जीवन ही संघर्ष है और अपने आप को झेल रहा हूॅं।

दूसरे को देख कर बहुत कुछ सीख रहा हूॅं। वो जो किया वो नहीं करना है वो दिल को बता रहा हूॅं। पर मन का क्या वही कर रहा है। मेरा जीवन तो है साहब कुछ से कुछ कर रहा । मेरा जीवन ही संघर्ष है और अपने आप को झेल रहा हूँ‌।

अपना पूरा प्रयास है, कह कर अपनों का भरोसा बना रहा हूॅं, पर अपने अंदर का विश्वास खो रहा हूॅं। रुक जा क्या कर रहा है यह मन का सुनकर अनसुना कर रहे हैं। क्या करू इस जीवन का जो मन का कभी न सुनता। इस जीवन से तंग सा आ गया हूॅं। मेरा जीवन ही संघर्ष है और अपने आप को झेल रहा हूॅं।

जिंदगी के राह में फश सा गया हूॅं। जिससे बोलता हूॅं निकालूंगा और धकेला जा रहा है क्या है इस जिंदगी का जो निकल नहीं पता और क्या करू जो मैं कोशिश भी नहीं कर पा रहा हूॅं। मेरा जीवन ही संघर्ष है और अपना आप को झेल रहा हूॅं।

सोच रहा हूॅं कि कुछ बड़ा करु जो कोई नहीं किया ओ सब करू। अपना सपना पूरा करु पर यह हो नहीं पाता। जिंदगी तो नरक है अब ठीक से रो भी नहीं पाता। मेरा जीवन ही संघर्ष है और अपने आप को झेल रहा हूॅं।


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Himanshu Kumar jha
Bihar