हथियारों की होड़ ....आपस में संघर्ष और अहं का टकराव...... - ZorbaBooks

हथियारों की होड़ ….आपस में संघर्ष और अहं का टकराव……

आज चर्चा करेंगे हथियार और युद्ध की। बात करेंगे’ मानव के बीच अहं के टकराव की और आज चर्चा इसलिये जरूरी है, क्योंकि” आज विश्व का एक भाग” एक देश युद्ध की त्रासदी को झेल रहा है। जी हां, आज युक्रेन और रुस के बीच युद्ध चल रहा है और शायद यह संघर्ष चरम पर पहुंच चुका है। शायद’ इससे आगे भी भयावह रुप ले और अतिशय भीषण मानव समूह का संहार हो जाए। किन्तु” युद्ध के केंद्र में क्या है?…प्रश्न जायज है और इसका जबाव होगा” अहंकार। यह अहंकार ही तो है, जो दोनों ओर से कोई भी झुकने के लिए तैयार नहीं है। निर्दोष मानव समूह के संहार के कीमत पर भी नहीं। परन्तु…इस युद्ध विभीषिका में पिसता तो जनमानस है। हां, आज युक्रेन” में लाखों निर्वासित हो चुके है और हजारों रोज ही अपनी जान गंवा कर इस युद्ध की कीमत चुका रहे है।

हां, युद्ध का यही परिणाम होता है। बलशाली कमजोर को दबाने की कोशिश करता है और कमजोर अपने-आप को ऐसे कमजोर साबित होने नहीं देना चाहता। फिर’ दोनों ओर से जी तोड़ कोशिश की जाती है कब्जे और प्रतिकार की। मैं इसलिये भी इस मुद्दे को ले रहा हूं, क्योंकि” एक तरफ रुस का हित है और एक तरफ पश्चिमी देशों का स्वार्थ। किन्तु” दूरदर्शिता की कमी बाला युक्रेन का राष्ट्राध्यक्ष बिना मतलब के इन स्वार्थ केंद्र के बीच फंसकर मोहरा बन गया। जी हां, युक्रेन को मोहरा ही कहा जा सकता है, क्योंकि” अपनी वर्तमान स्थिति को जान कर भी शक्तिशाली राष्ट्र से टकराना’ दूरदर्शिता की कमी को ही दर्शाता है और उसका परिणाम आज पूरा विश्व देख रहा है।

कमोवेश’ यही स्थिति पूरे विश्व की है। हर एक जगह संघर्ष छिड़ा हुआ है। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर राजनीतिक, आर्थिक, अथवा तो सांस्कृतिक वर्चस्व के लिए संघर्ष रत है। स्थिति इतनी भयावह है कि” कहा नहीं जा सकता, कहां युद्ध छिड़ जाए। अब ऐसी स्थिति क्यों बनी है?….उसका एनालाइज किया जाए, तो रिजल्ट चौंकाने बाला होगा। वैसे तो’ पहले सदियों पहले से ही ऐसा ही होता आया है। एक बलशाली दूसरे पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए हमेशा ही प्रयास रत रहे है। पहले भी, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक वर्चस्व के लिए एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर युद्ध थोपते थे, परन्तु….उस समय ऐसी परिस्थिति बिल्कुल भी नहीं थी।

किन्तु” आज परिस्थिति उलट है, आज युद्ध किए नहीं जाते, बल्कि करवाए जाते है। आज’ कहने को विश्व का मुखिया, ऐसा अमेरिका, अपनी चौधराहट को लेकर हमेशा ही सजग रहता है। उसकी अपनी नीति है और ऐसा होना भी चाहिए एक शक्ति संपन्न राष्ट्र के लिए। परन्तु…बात इससे बिल्कुल उलट है और भयकारी भी। आज पूरे विश्व में हथियारों के लिए एक अदृश्य होड़ मचा हुआ है और हथियार भी ऐसे, जो अति विनाशकारी और मानव सभ्यता के लिए घातक है। परन्तु….इससे किसी राष्ट्र को कोई फर्क पड़ने बाला नहीं है, क्योंकि” इस दुनिया में अपना अस्तित्व बचाए रखना है, तो हथियार विकसित करने ही होंगे। उन्नत किस्म के हथियार और फाईटर प्लेन खरीदना ही होगा।

बस’ आज दुनिया में चारों तरफ जो संघर्ष छिड़ा हुआ है, उसके पीछे सब से बड़ा परिबल यही है। क्योंकि” ज्यादातर हथियार निर्माण करने बाली कंपनियां पश्चिम के राष्ट्रों के पास है। अब तो पूर्व के राष्ट्र भी इस मामले में सचेष्ट हो चुके है, फिर भी, अभी भी हथियारों के उत्पादन में पश्चिम का कोई सानी नहीं। उसमें भी उन्नत, घातक और विनाशकारी। अब हथियार निर्माण करने बाली कंपनियों का हित हथियार की बिक्री में है और राष्ट्र का हित इन कंपनियों के हित में छिपा हुआ है। परन्तु…कीमत अधिक होने से हथियार हमेशा तो खरीदा नहीं जा सकता। किन्तु” कंपनियां तो निरंतर ही हथियारों के निर्माण में लगी ही हुई है। अब हथियार कैसे बिके? तो दो राष्ट्र को उलझा दो और आराम से अपने हथियार बेचो और तमाशा देखो।

हां, हथियारों के विकाश और आपसी होड़ ने मानव सभ्यता को ज्वालामुखी पर बिठा दिया है। अब उन्नत किस्म के हथियार होंगे, तो राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी जोर मारेगा। बस’ जहां देखो, वहीं पर युद्ध की स्थिति बनी हुई है। उसपर हथियार बनाने बाली कंपनियों का हस्तक्षेप, कहा नहीं जा सकता कि” कब कहां क्या घटित हो जाए। वैसे भी’ जब कोई सभ्यता अपने विकास के चरम पर पहुंचती है, उसका विनाश हो जाता है, तभी तो कहा गया है, विकास ही विनाश की जननी है। ऐसे में मानव अब भी नहीं चेता, तो फिर महा विनाश को आने से कोई भी नहीं रोक सकता।


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मदन मोहन'मैत्रेय'