अति गाढो चटकारो है प्रीति को रंग’…..
श्रृंगार” रस कविता
अति गाढो चटकारो है प्रीति को रंग’
प्रीतम के नैनन में दिखे अनेरो उमंग।
उठे हिया में उल्लास’ मिलने की आश’
देखे पगडंडी, जाग जाए अंखियों की प्यास।
जागे-जागे कटे रैना’ आबे नाहीं रे चैना।
बिछुड़न की पीड़ा जैसे, हो लिपटे भुजंग।।
प्रेमन की रीति न्यारी’ पाती लिख डाले’
लिखे जो संवाद” प्रेम के रस डुबाई के’
मिलो आके सजना’ लिखा समझाई के’
लिख डाले प्रेम शब्द’ सुधबुध बिसराई के।
नैना नहीं आबे निंदिया, बीती जाए रैना।
बिछुड़न की पीड़ा जैसे, हो लिपटे भुजंग।।
मैंने जब से है जाना’ किया अपना पिया को’
दिल में बसाई है छवि” अँखियां में संजोई के’
दिल बना मेरा पागल’ सपने नेह के संजोई के’
बाते करु मैं अब तो’ रस प्रेम के भिगोई के।
अब तक नहीं जो आए पिया, निकले नहीं वैना।
बिछुड़न की पीड़ा जैसे’ हो लिपटे भुजंग।।
अति गाढो चटकारो, लगे है अति न्यारो’
प्रेमन की पाती भेजी, मिलने को तो आइए’
मिलन की बीते न रतिया, आके नैना मिलाइए’
मन के झरोखे पे, पिया मेरे दरश तो दिखाइए।
बालम न आए अब तक, सितम ढाए रैना।
बिछुड़न की पीड़ा जैसे’ हो लिपटे भुजंग।।
अति गाढो चटकारो’ प्रेम रंग स्वाद में अनूठो’
मैं अब ना जानु कोई बातें, पिया मिलने को आए’
हिया अनुराग की लहर उठे, आके नैनन तो मिलाए’
प्रेमन की डोर बांधे, आके पिया जिया हर्षाए।
अजु लौ न आए सजना’ बिकल करे रैना।
बिछुड़न की दौड़ा जैसे’ हो लिपटे भुजंग।।