किंचित’ अभी हो जाएगा चमत्कार……..
किंचित’ अभी हो जाएगा चमत्कार।
पथ पर फैला विस्मय का धुंध छंटेगा।
सत्य प्रकाश की आभाएँ आलोकित होने से।
मन पर विषम भार, बच जाऊँ ढोने से।
विस्मय जो अब तक था, दूर-दूर तक फैला।
अब वह किंचित नहीं बचेगा पथ का अंधकार।।
समय चक्र के अनुकूल हो जाऊंगा अब।
जीवन पथ पर नियम गति का जान ही लूंगा।
वह अमृत मय ज्ञान, अंजुली में छान ही लूंगा।
करना है जो कर्तव्य, हृदय में ठान ही लूंगा।
मन विस्मय के द्वंद्व से अब तक था जो मैला।
अब वह किंचित नहीं बचेगा पथ का अंधकार।।
उन वैभव भरे साम्राज्य का, आकांक्षी जो था।
अब संभल गया हूं, निर्णय करने का जो पल है।
अनुमानित का ध्येय हृदय में बन बैठा निश्चल है।
जीवन पथ पर दिव्य ज्योत, जला जो’ हलचल है।
पहले’ युग्मों का प्रतिफल बना था अधिक विषैला।
अब वह किंचित नहीं बचेगा पथ का अंधकार।।
अब तो” मन आँगन में ज्योत्सना भाव जागृत है।
जीवन पथ पर हूं, अब तो उम्मीदों का शोर करूंगा।
जीवन सरिता निर्मल है, अमृत रस भर लूंगा।
आगे पथ पर शंकाएँ भी है, अलग ही पांव धरूंगा।
पहले तो अहं भाव पलता था, कड़वा स्वाद कसैला।
अब वह किंचित नहीं बचेगा पथ का अंधकार।।
सत्य के मानक सांचों में, ढल’ अब चमत्कार होगा।
निखरूंगा मानव होकर, पथ पर सही व्यवहार होगा।
जीवन के संग कदम मिला लूं, सही आधार होगा।
मन निर्मल हो जाऊँगा, जीवन सहर्ष तैयार होगा।
जो अब तक मन में थे विचार, लिए रंग मटमैला।
अब वह किंचित नहीं बचेगा पथ का अंधकार।।
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