माधव' कब ते गए आज मिले हो...... - ZorbaBooks

माधव’ कब ते गए आज मिले हो……

माधव’ कब ते गए आज मिले हो।

पहले तो मिलते थे प्रगाढ़ प्रेम बस’

कहते थे, अतिशय प्रेम के हो भूखे’

जीम लिए थे सबरी के झूठन किए’

प्रेम सहज बांकी छवि ‘हो अनुराग के भूखे।।

माधव’ आप का कित लगी करुं बराई।

माधव’ भक्त हृदय की ध्यान को रखते हो’

अपने जन की प्रेम माधुरी’ हृदय में धरते हो’

हे मुरली मनोहर श्याम’ जगत की पीड़ा हरते हो’

हो स्वामी तुम अपने दास के, हामी भरते हो।।

माधव’ प्रभु ठाकुर हो दयाल जगत में तुम ही।

हे गिरिधर’ बढाओ हाथ, दो चरणों की सेवा’

वांक्षा कल्पतरु हे केशव’ पाऊँ प्रेम कलेवा’

हे मुरली मनोहर मुरली बजाओ कदंब टेर पे’

बांका छवि लिए छैल- छबीले, भोग लगाओ मेवा।।

माधव’ सहज प्रेम के बस’ मुरली मधुर बजाओ।

मन भावते मेरे’ श्री जू सेवा में मोहे दास बनाओ’

एक मैं दास-एक स्वामी तुम, स्नेह गांठ बंध जाओ’

प्रीति चरण की दे दो नटवर’ मेरे मन बस जाओ’

छैल-छबीले श्याम’ अनुराग के बस’ मेरा हो जाओ।।

माधव’ सहज प्रेम में बंधने बाले गिरिधारी।

बांको छबीलो मोहन’ तेरो अंग-अंग प्रभु टेढो’

मधुवन में प्रभु मेरे, नित रास रचाये मोहन’

सार तत्व जगत के नटवर, लिए सखा को घेरो’

हे राधा के श्याम’ अर्जी चरण में प्रीति बढे घनेरो।।

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