वेदना' हृदय पर घात करे' प्रतिघात करें..... - ZorbaBooks

वेदना’ हृदय पर घात करे’ प्रतिघात करें…..

वेदना’ हृदय पर घात करें’ प्रतिघात करें

दुश्चिंता के बादल’ उलटी ही बात करें’

मन क्षुब्ध है आए है दुःख साथ कई’

हृदय में अश्रु स्रोत’ दुःख अंधियारी रात करें।

भयांकांत हो देख रहा हूं, नव प्रकाश आए।

अंतस मन के वेदना का’ यह प्रहर बीत जाए।।

आश्चर्य चकित हूं, पीछे कुछ तो छूट गया’

कुछ तो था अनमोल’ गिरते ही टूट गया’

मन के केंद्र पर अंकुश कई पड़ा एक साथ’

एक अंधेरे में पथ’ लगता है कोई रुठ गया।

यह हृदय वेदना का ज्वर” अब तो नहीं सताए।

अंतस मन के वेदना का’ यह प्रहर बीत जाए।।

कुछ अघटित हो बैठा है, रात बिकल करने को’

अभी हृदय के बिंदु पर गहरा आघात हुआ है’

वेदना ने आकर घेरा है’ विस्मय भरा बात हुआ है’

अश्रु बिंदु छलके है’ अभी कुछ ऐसा हालात हुआ है।

अभी वेदना में झुलसा हूं, स्नेह लेप शीतलता पहुंचाए।

अंतस मन के वेदना का’ यह प्रहर बीत जाए।।

देख रहा हूं कब से’ नभ में तारों का समूह है’

टूटा है कुछ आस-पास, गिरा भूमि पर आकर’

हृदय केंद्र पर जैसे’ पहले गहरी चोट लगा कर’

छूटा है कोई संग से पीछे, नयनों में अश्रु जगाकर।

आहत हूं हृदय में ग्रहीत भाव से, नैना नीर बहाए।

अंतस मन के वेदना का’ यह प्रहर बीत जाए।।

वेदना’ निष्ठुर है, हृदय में आकर चूभी हुई है कब से’

लगता है अंधियारे का साम्राज्य’ कुपित बना हुआ है’

मन अशांत है कब से’ कब से खुद से ठना हुआ है’

अश्रु बिंदु भी” एकरस वेदना के रंग ही सना हुआ है।

मन का अतिशय विलाप’ चेतना धूमिल हो जाए।

अंतस मन के वेदना का’ यह प्रहर बीत जाए।।


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मदन मोहन'मैत्रेय'