यूं मौन रहो जो तुम - ZorbaBooks

यूं मौन रहो जो तुम

 

 

 

यूं मौन रहो जो तुम!

थम जाएगी नदियों की धारा!

बदलेंगे रूख गगन में बादल भी!

ना आएंगे नील गगन में तारा!

हे मृदुभाषिनी अब बोल भी दो!

होंठों पर परे ताले खोल भी दो!!

यूं मौन रहो जो तुम!

बादल भी गरजना भूल परे!

मेरे अरमाणों पर बरछी शूल परे!

मेरे अँखियन में भय के धूल परे!

सच कहें हम प्रेम की पाती भूल परे!

हे प्राण प्रिय अपनी वाणी बोल भी दो!

होंठों पर परे ताले खोल भी दो!!

यूं मौन रहो जो तुम!

मेरा तो होली जले सजे अरमाणों की!

यूं तुम जो देख रही अंजानो सी!

मेरा हालत ऐसा है दीवानो सी!

जो प्रिय तेरी सांस चले तूफानो सी!

मुझपे प्रिय प्रेम पतीला यूं ढोल भी दो!

होंठों पर परे ताले खोल भी दो!!

यूं मौन रहो जो तुम!

सजदे में हूं तुम्हारे प्राण प्रिय!

तेरे लिये अपने हथेली जान लिये!

तुम्हे मनाने को प्रण ठान लिये!

कदमों में तेरे मान लिये-सम्मान लिये!

मेरे मन में तुम वानी के रस घोल भी दो!

होंठों पर परे ताले खोल भी दो!!

 

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मदन मोहन'मैत्रेय'