Dete h pankh Mujhe
देते है पंख मुझे
पर पुछो क्या मैं आज़ाद हूँ !!
कही रिवाजों की बेड़ियाँ
कही समाज से आघात हूँ
कभी कोई दरिंदा नोचने को
तो कहीं किसी के लिए अभिशाप हूँ।
देते है पंख मुझे
पर पुछो क्या मैं आज़ाद हूँ !!
कहीं होतीं पूजा मेरी
कहीं बिकतीं आज़ाद हूँ
कभी कोई दे दे आसरा
तो कभी अपनों पर ही भार हूँ।
देते है पंख मुझे
पर पुछो क्या मैं आज़ाद हूँ !!
बन जाऊँ राधा किसी की
तो कहते ना स्वीकार हूँ
बन जाऊँ सती किसी की
तो कहते महिमा पार हूँ।
देते है पंख मुझें…
पर पुछो क्या मैं आज़ाद हूँ !
कर जाऊँ सबकी सी
कहते जीवन संस्कार हूँ
कर जाऊँ खुदकी सी
तो होती मर्यादा पार हूँ।
देते है पंख मुझे
पर पुछो क्या मैं आज़ाद हूँ …!!
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