उलझन की दास्तां - ZorbaBooks

उलझन की दास्तां

पल में आना पल में जाना,

जिंदगी का अपना एक अपना नजराना,

कहते कहते क्या कह जाना,

अच्छा या बुरा सब बोल जाना,

लगे कैसा किसको न जाना हमने,

बोलना था हमको लेकिन बोल पड़े,

सोचा तो बाद में लेकिन एहसास हुआ तब,

क्यों हुआ ऐसा कैसे हुआ ऐसा।

जीवन के उलझन में ना जाने क्या किया,

खुद को परेशान किया हर तरह से,

सोचते हुए कैसे ख्याल आए मुझे,

फिर भी हसते हुए चल पड़े राहों में।


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