हमारा जीवन बाधाओं से भरा है
लीजेंड से भरी है
दुनिया हमारी
कोई कहता है,
ये करो और बनो फलहारी .
जूठी जैसी दुनिया ना होये
होए सत्संग पैटर्न पुरुष और स्त्री
दुनिया की आशा रख कर
जाब ना मिले उसे
अरोप वू तुझको लगाई
बीमार भारी शहर
पे चिट्टियाँ भी डौर लागै
और इधर सत्संग सब
गारी लेकर आये
लोगो की आदत
है बड़ी तेवोना
बोलने में तो बोलकर
चले जाते लेकिन
कोई नहीं कर पाता
आदत है सबके पास
अच्छी न रख पाये
कोई मिल जाए वू
तालाब से जो जलते
हुए ना जल पाते कभी
आसमान में देखे
सब चिड़ियों के साथ
घूमते हैं
ये दुनिया बड़ी धोखेबाज़ है
शहरों के जैसे लाज
रखो पार इतना नहीं
जो बावरे पार जाए
राखो बस इतना
जैसे हम बावरे को बाचा पै
समुंदर के लहर
जैसे दौर तो मई
ना लगा पाउ
ढलना हम लोगों को देखने
में अच्छा लगता है
पर हम क्यों नी ढल पाते?
सबके जैसा नहीं है जिंदगी
हर कोई खुद पे रहता है
सबको आज तुलना चाहिए
पर सब कोई एक थोरै ना होत है
अरे , कोई क्यू ना समझे ?
तुलना तो पसंद नी है मुझे
इसलिये मई बताती हुई
मानव शरीर दिया है भगवान ने
उसे के श्रद्धा जानाति हुई
ये कैसी अजीब जिंदगी है
हर कोई दूसरे के पीछे पड़ी रहती है समझने वाले लोग
आज खुद नी समझते?
शब्द तो है काफ़ी सारे
मैं ना उसे लिख पाऊ,
लिखे मैंने जिंदगी की भाग
जो मैंने कभी नहीं बताया पायी
अरे जिंदगी जिओ
एक पल उसको
तेहार से काम मत समझो
क्या पता वू दिन के बाद
फिर से अगले साल की
प्रतीक्षा कर्ण पड़
~अश्मिता चक्रवर्ती
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