मैं खुद
मैं खुद
मैं अब टूट चुका हूं ,हार चुका हूं झूठी मुस्कुराहट से ,बेचैन मन के आहट से ,अकेला बैठता हूं तो दूसरों से खुद को हारा हुआ पाता हूं आईने को देखता हूं तो खुद को पहले जैसा नहीं पाता हूं ,वह बेचैन मन जो सब जानने को पहले बेताब हुआ करता था ,आज वह शांत है जो हर सवाल से पहले जवाब देने को तैयार हुआ करता था, चलते समय में मैं अकेला छूट चुका हूं मैं अब टूट चुका हूं
दोस्ती यारी हमारे बस की बात नहीं लगती, यह देख और मान चुके हैं हम, जो कामयाब है दोस्ती यारी उनकी ही है तन लगती यह खुद को बता चुके हैं हम, अब तो मानो लम्हा कुछ यूं है अगर अब कहीं जाए भी हम तो तो चार लोगों से हेलो हाय के बाद नजर चुरा लेते हैं, उनकी संगत से खुद को अकेला छुपा लेते हैं, अंत में उसे भारी संगत से खुद को वहां से भाग लेते हैं, चलती समय में मैं अकेला छूट चुका हूं मैं अब टूट चुका हूं
मैं फिर लौटेगा एकांत से, इस भरे अंधकार से , मजे का शोर चौतरफा हमारे ही नाम से, यह एकांत की इस अंधेरे को वनवास मान लेता हूं, विपत्ति जब आए खुद को राम मान लेता हूं, इस अंधेरी रात के बाद मैं सूरज निकाल कर लाऊंगा , मैं टूटा जरूर हूं पर तुमने सोच कैसे लिया मैं बिना प्रयास के हार मान जाऊंगा
प्रियांशु सिंह
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